धीरे चलो, धीरे बंधु लिए चलो धीरे
मंदिर में, अपने विजन में
पास में प्रकाश नहीं, पथ मुझको ज्ञात नहीं
छाई है कालिमा घनेरी
चरणों की उठती ध्वनि आती बस तेरी
रात है अँधेरी
हवा सौंप जाती है वसनों की वह सुगंधि,
तेरी, बस तेरी
उसी ओर आऊँ मैं, तनिक से इशारे पर,
करूँ नहीं देरी
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